गाय भैस में भी हो रहा कैंसर, बिना उबाले दूध न पीयें वर्ना आप को भी हो सकता है कैंसर

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गाय भैस में भी हो रहा कैंसर, बिना उबाले दूध न पीयें वर्ना आप को भी हो सकता है कैंसर

गाय भैस में भी हो रहा कैंसर, बिना उबाले दूध न पीयें वर्ना आप को भी हो सकता है कैंसर without boiling milk can cancer
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यह जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है और इसे गंभीरता से लेना चाहिए। दूध और उसके सेवन से जुड़े कैंसर के मामलों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यहां कुछ प्रमुख बिंदु हैं जो इस विषय को स्पष्ट करते हैं:

कैंसर के मामले

  • गाय और भैंस में कैंसर: हाल के शोधों के अनुसार, गाय और भैंस में भी कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं, जो पहले केवल घोड़ियों में पाए जाते थे।

  • लुवास ने हाल ही में अपने यहां आने वाले जानवरों अल्ट्रासाउंड से डाटाबेस तैयार किया है, जिसमें सामने आया कि भैंस या गाय में कैसर के मामले कम नहीं है। वैज्ञानिक अब तक मानते थे कि घोड़ियों में ही कैंसर पाया जाता है। मगर पिछले कुछ समय में दुधारू पशुओं में भी कैंसर के तत्व पाए जा रहे हैं।

  • पशु विज्ञानी बताते हैं कि अगर । इन दुधारू पशुओं का दूध बिना उबाले पिया तो कैंसर आपको भी हो  सकता है। हालांकि भारत में खास बात है कि यहां लोग दो से तीन बार - दूध उबाल कर पीते हैं। इस कारण दूध में मौजूद कैसर फैलाने वाले तत्व समाप्त हो जाते हैं। वैज्ञानिक बताते हैं कि दूध पीने से पहले उसे दो से तीन बार धीमी आग पर कम से कम तीन बार जरूर उबालें।. 

  • अल्ट्रासाउंड का उपयोग: लुवास द्वारा किए गए अल्ट्रासाउंड से सैकड़ों जानवरों पर अध्ययन किया गया, जिससे कैंसर के मामले सामने आए हैं।


लुवास का शोध

  •  सैकड़ों जानवरों का अल्ट्रासाउंड किया तो सामने आई हकीकत

  • अब तक अक्सर वैज्ञानिक मानते थे कि घोड़ी में ही होता है कैंसर

  • भैंस और गाय के गर्भाशय में कैंसर के आ रहे मामले

  • लुवास के गायनोकोलॉजी डिपार्टमेंट में पशु वैज्ञानिक बताते है कि हमारे पास जो भी पशु आए, उनका डाइग्नोज किया, जिसमें पाया कि भैस और गाय के गर्भाशय में कैंसर के कई केस हैं। अगर समय पर पता चल जाता है कि इस केस में उनके गर्भाशय को निकालकर ही उपचार किया जा रहा है। अल्ट्रासाउंड की सुविधा से यह संभव हो सकता है।


दूध का सेवन

  • उबला हुआ दूध: पशु विज्ञानियों का मानना है कि बिना उबाले दूध का सेवन करने से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। भारत में लोग दूध को कई बार उबालते हैं, जिससे कैंसर फैलाने वाले तत्व समाप्त हो जाते हैं।

  • सावधानी: वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि दूध को कम से कम तीन बार धीमी आंच पर उबालना चाहिए।

कैसे फैलती है यह गाय- भैस में बीमारी ?

चारा और जल

  • पशुओं को जो चारा दिया जा रहा है, उनमें रासायनिक दवाओं के प्रयोग होता है। फसलों में रासायनिक दवाओं के प्रयोग के बाद बारिश के पानी में यह दवाएं मिल जाती है। इसके बाद किसी जलाशय से पशु जब पानी पी लेते हैं तो उनमें कैंसर की पूरी-पूरी संभावना रहती है। पशु वैज्ञानिक बताते हैं कि पशु विज्ञान में विदेशों में काफी काम हो चुका है, भारत में अब इस पर काम में तेजी आई है। 

  • रासायनिक दवाएं: पशुओं को दिए जाने वाले चारे में रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल होता है, जो बारिश के पानी के माध्यम से जलाशयों में मिलकर पशुओं को प्रभावित कर सकता है।

निष्कर्ष

  • डायग्नोसिस का महत्व: समय पर डायग्नोसिस से गाय और भैंस के कैंसर का इलाज संभव है, और इस दिशा में अनुसंधान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

यह जानकारी लोगों को जागरूक करने के लिए महत्वपूर्ण है ताकि वे स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहें और उचित सावधानियों का पालन करें।


क्या इस शोध के परिणामों के आधार पर दूध की सुरक्षा के लिए कोई नई नीतियाँ बनाई जा रही हैं?


इस शोध के परिणामों के आधार पर दूध की सुरक्षा के लिए कुछ संभावित नीतियाँ बनाई जा सकती हैं, जो निम्नलिखित हैं:

1. उबालने की अनिवार्यता

  • सिफारिश: दूध को बाजार में बिक्री से पहले उबालने की अनिवार्यता को लागू किया जा सकता है।

  • नियम: यह सुनिश्चित करने के लिए कि उपभोक्ताओं को सुरक्षित दूध मिले, दूध की बिक्री से पहले उसका परीक्षण और उबालना आवश्यक हो।

2. पशु स्वास्थ्य निगरानी

  • अल्ट्रासाउंड जांच: दुधारू पशुओं की नियमित जांच और अल्ट्रासाउंड स्कैनिंग की नीति विकसित की जा सकती है।

  • स्वास्थ्य रजिस्टर: पशुओं के स्वास्थ्य का रजिस्टर रखा जाए, जिसमें कैंसर के मामलों का रिकॉर्ड हो।

3. रासायनिक दवाओं पर नियंत्रण

  • कृषि नीतियाँ: खेती में रासायनिक दवाओं के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए नई नीतियाँ बनाई जा सकती हैं।

  • सतत कृषि प्रथाएँ: जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं।

4. जन जागरूकता कार्यक्रम

  • संपर्क अभियान: उपभोक्ताओं और पशुपालकों के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं, जिसमें दूध के सेवन और स्वास्थ्य सुरक्षा के बारे में जानकारी दी जाए।

  • शिक्षा: स्कूलों और सामुदायिक केंद्रों पर शिक्षा कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं।

5. अनुसंधान और विकास

  • अनुसंधान फंडिंग: दूध और पशु स्वास्थ्य पर अनुसंधान के लिए विशेष फंडिंग और सहयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है।

  • पशु चिकित्सा में उन्नति: पशु चिकित्सा क्षेत्र में नए उपचार और तकनीकों के विकास को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

ये नीतियाँ न केवल दूध की सुरक्षा को सुनिश्चित करेंगी, बल्कि पशुओं के स्वास्थ्य और उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाएंगी।


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