किसानों को सलाह अभी कम करदे यूरिया और डीएपी उपयोग, वर्ना होंगा नुकसान- फसल होंगी कम

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किसानों को सलाह अभी कम करदे यूरिया और डीएपी उपयोग, वर्ना होंगा नुकसान- फसल होंगी कम 

DAP UREA USES LOSS SOIL FERTILITY
DAP UREA USES LOSS SOIL FERTILITY 

प्राकृतिक तत्वों की दुश्मन: यूरिया और डीएपी

मिट्टी की उर्वरता का संकट

हाल के शोध में वैज्ञानिकों ने बताया है कि देश की 54 प्रतिशत उपजाऊ जमीन की मिट्टी अपनी उर्वरता खो चुकी है। इसका मुख्य कारण यूरिया और डीएपी जैसे रासायनिक खादों का असंतुलित उपयोग है।

रासायनिक खादों के दुष्प्रभाव

  1. प्राकृतिक तत्वों का ह्रास:

    • असंतुलित रासायनिक खादों का प्रयोग मिट्टी में प्राकृतिक तत्वों को खत्म कर रहा है।

    • यदि यही स्थिति रही, तो आने वाले समय में उपजाऊ जमीन का बड़ा हिस्सा बंजर भूमि में बदल जाएगा।

  2. नाइट्रोजन का उपयोग:

    • किसानों द्वारा इस्तेमाल किए गए नाइट्रोजन का केवल 30% हिस्सा ही पौधों द्वारा उपयोग किया जाता है।

    • फसल की मांग से अधिक नाइट्रोजन का उपयोग वाष्पीकरण के जरिए वातावरण में पहुँच जाता है।

  3. भूजल प्रदूषण:

    • कुछ यूरिया जमीन में रिस जाता है और नाइट्रोजन से मिलकर नाइट्रासोमाइन बनाता है, जिससे भूजल दूषित होता है।

    • दूषित पानी पीने से कैंसर, रेड ब्लड कणों की कमी, और रसौली जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।

  4. फसल का स्वास्थ्य:

    • अधिक मात्रा में यूरिया का उपयोग फसलों की रसीलेपन को बढ़ा देता है, जिससे पौधे बीमारियों और कीट संक्रमण के शिकार हो सकते हैं।

निष्कर्ष

इसलिए, रासायनिक खादों के असंतुलित उपयोग से बचना और प्राकृतिक खादों का उपयोग बढ़ाना आवश्यक है। यह न केवल मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करेगा, बल्कि स्वस्थ फसल उत्पादन में भी योगदान देगा। किसानों को चाहिए कि वे संतुलित उर्वरक प्रबंधन अपनाएँ और मिट्टी की सेहत का ध्यान रखें।


यह शोध सही है और कई वैज्ञानिक अध्ययनों द्वारा समर्थित है। यहाँ कुछ मुख्य बिंदु हैं जो इस विषय को स्पष्ट करते हैं:

1. मिट्टी की उर्वरता में कमी

  • अनियंत्रित रासायनिक खादों का उपयोग मिट्टी में प्राकृतिक पोषक तत्वों, जैसे कि कार्बन, नाइट्रोजन, और फास्फोरस, की कमी का कारण बन सकता है। यह मिट्टी की संरचना और स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

2. नाइट्रोजन का उपयोग

  • अनुसंधान में यह पाया गया है कि पौधे केवल सीमित मात्रा में नाइट्रोजन का उपयोग करते हैं। अधिक नाइट्रोजन का उपयोग वाष्पीकरण के माध्यम से वातावरण में चला जाता है, जिससे जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण बढ़ता है।

3. भूजल प्रदूषण

  • नाइट्रासोमाइन और अन्य रासायनिक यौगिकों का निर्माण भूजल को प्रदूषित करता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे कैंसर और अन्य बीमारियाँ।

4. फसलों की स्वास्थ्य

  • अधिक रासायनिक खादों का उपयोग फसलों को रसीला तो बनाता है, लेकिन यह उन्हें कीटों और रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील भी बनाता है।

निष्कर्ष

इन बिंदुओं के आधार पर, यह स्पष्ट है कि रासायनिक खादों का असंतुलित प्रयोग मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकता है। इसलिए, संतुलित उर्वरक प्रबंधन और प्राकृतिक कृषि तरीकों को अपनाना आवश्यक है। किसान और कृषि वैज्ञानिक इस दिशा में काम कर रहे हैं ताकि sustainable agriculture को बढ़ावा दिया जा सके।


किसान इस समस्या का समाधान कैसे कर सकते हैं?


किसान इस समस्या का समाधान करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपना सकते हैं:

1. संतुलित उर्वरक प्रबंधन

  • जैविक खादों का उपयोग: वर्मी कम्पोस्ट, गोबर की खाद, और अन्य जैविक खादों का उपयोग करें।

  • रासायनिक खादों का संतुलित उपयोग: यूरिया और डीएपी का उपयोग आवश्यकतानुसार करें और मिट्टी की जांच के आधार पर सही मात्रा निर्धारित करें।

2. मिट्टी की जांच

  • मिट्टी परीक्षण: मिट्टी की गुणवत्ता और पोषक तत्वों की स्थिति जानने के लिए नियमित रूप से मिट्टी परीक्षण कराएँ।

  • पोषक तत्वों की कमी: परीक्षण के आधार पर आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति करें।

3. फसल चक्र अपनाना

  • विभिन्न फसलों को बारी-बारी से उगाएँ। इससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है और कीटों और बीमारियों का प्रभाव कम होता है।

4. संवेदनशीलता को बढ़ाना

  • प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग: नीम का तेल, लहसुन का अर्क, और अन्य प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग करें।

  • फसल विविधता: विभिन्न फसलों को एक साथ उगाने से कीटों का प्रभाव कम होता है।

5. वृष्टि आधारित सिचाई

  • पानी की उचित मात्रा का उपयोग करें और ड्रिप या स्प्रिंकलर सिचाई का अपनाएँ, जिससे जल का संरक्षण हो सके।

6. शिक्षा और प्रशिक्षण

  • किसानों को कृषि विज्ञान केंद्रों या स्थानीय कृषि विभाग के माध्यम से नए तरीकों और तकनीकों के बारे में शिक्षित करें।

7. सहकारी समितियाँ और समूह

  • स्थानीय सहकारी समितियों के साथ मिलकर काम करें ताकि संसाधनों और जानकारी का सही उपयोग किया जा सके।

निष्कर्ष

इन उपायों को अपनाकर किसान अपनी फसलों की गुणवत्ता और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रख सकते हैं, जिससे दीर्घकालिक कृषि उत्पादन में सुधार होगा। सतत कृषि के माध्यम से वे अपने पर्यावरण का भी संरक्षण कर सकते हैं।


किसान फसल चक्र के लिए कौन सी फसलें सबसे उपयुक्त हैं?


फसल चक्र के लिए उपयुक्त फसलें मौसम, मिट्टी की स्थिति, और स्थानीय जलवायु पर निर्भर करती हैं। यहाँ कुछ सामान्य फसलें दी गई हैं जो फसल चक्र में उपयोगी हो सकती हैं:

1. खरीफ फसलें

  • धान: गर्मी के मौसम में उगाई जाती है।

  • फिटकरी: इसकी फसल भी खरीफ में होती है और यह मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में मदद करती है।

  • सोयाबीन: नाइट्रोजन फिक्सिंग के कारण मिट्टी के लिए फायदेमंद।

2. रबी फसलें

  • गेहूं: ठंडे मौसम में उगाई जाती है, और यह एक प्रमुख रबी फसल है।

  • चना: इसे रबी में उगाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है।

  • ज्वार और बाजरा: ये फसलें भी रबी में उगाई जा सकती हैं।

3. गर्मी की फसलें

  • भिंडी: गर्मी में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण सब्जी।

  • कद्दू: यह भी गर्मी में उगाई जाती है और मिट्टी के लिए लाभकारी होती है।

4. जड़ी-बूटियाँ और मसाले

  • तुलसी, पुदीना, और धनिया: ये फसलें विभिन्न मौसमों में उगाई जा सकती हैं और मिट्टी में पोषक तत्वों की संतुलन बनाए रखती हैं।

5. फसलें जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती हैं

  • फलियां (जैसे मूंग, मसूर): ये नाइट्रोजन फिक्सिंग करती हैं और मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारती हैं।

निष्कर्ष

फसल चक्र का सही उपयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने, कीटों और रोगों के प्रभाव को कम करने, और उत्पादन में सुधार करने में मदद करता है। किसानों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार फसलें चुननी चाहिए ताकि वे अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें।



जैविक खाद , किट-पतंग रोकने की प्राकृतिक विधि (पेस्ट कंट्रोल) और बनाने की विधि

जैविक खाद और पेस्ट कंट्रोल

जैविक खाद

जैविक खाद उन खादों को कहा जाता है जो प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होती हैं और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में मदद करती हैं। ये मिट्टी में पोषक तत्वों को संतुलित करने और फसलों के विकास को बढ़ावा देने में सहायक होती हैं।

प्रमुख प्रकार की जैविक खाद

  1. गोबर की खाद

    • स्रोत: पशुओं का गोबर।

    • लाभ: मिट्टी की संरचना को सुधारता है और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाता है।

  2. वर्मी कम्पोस्ट

    • स्रोत: कृमियों द्वारा निर्मित खाद।

    • लाभ: यह पौधों के लिए अत्यधिक पोषक तत्व प्रदान करता है और मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाता है।

  3. सूपरफॉस्फेट

    • स्रोत: प्राकृतिक खनिजों से प्राप्त।

    • लाभ: फास्फोरस की अच्छी मात्रा प्रदान करता है, जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक है।

बनाने की विधि

  1. गोबर की खाद बनाने की विधि:

    • गोबर को 1:1 अनुपात में पानी के साथ मिलाएँ।

    • इसे 2-3 सप्ताह तक कवर करके रखें।

    • समय-समय पर हिलाएँ ताकि इसे हवा मिल सके।

    • जब यह गाढ़ा और भुरभुरा हो जाए, तो इसे मिट्टी में मिलाएँ।

  2. वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि:

    • एक बक्से या गड्ढे में सूखे पत्ते, किचन के कचरे, और गोबर डालें।

    • उसमें वर्मा (कृमि) डालें।

    • इसे नमी बनाए रखें और 2-3 महीने बाद तैयार खाद प्राप्त करें।


जैविक पेस्ट कंट्रोल

जैविक पेस्ट कंट्रोल का अर्थ है कि कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक यौगिकों का उपयोग करना। यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित और फसलों के लिए लाभकारी होता है।

प्रमुख जैविक पेस्ट कंट्रोल उपाय

  1. नीम का तेल

    • लाभ: यह कीटों को दूर रखता है और बीमारियों को नियंत्रित करता है।

    • विधि: 5-10 मिलीलीटर नीम का तेल प्रति लीटर पानी में मिलाएँ और पत्तियों पर छिड़कें।

  2. लहसुन का अर्क

    • लाभ: यह कीटों को भगाने में मदद करता है।

    • विधि: 2-3 लहसुन की कलियाँ 1 लीटर पानी में उबालें और ठंडा करके छिड़काव करें।

  3. काली मिर्च और अदरक का मिश्रण

    • लाभ: कीटों के लिए प्राकृतिक रिपेलेंट।

    • विधि: 100 ग्राम काली मिर्च और अदरक को 1 लीटर पानी में उबालें। ठंडा करके छिड़काव करें।

4. कीट और रोग प्रबंधन:

  • जैविक कीटनाशक: नीम का तेल, पुदीने का अर्क, सिट्रोनेला तेल, स्पिनोसिन, बैसिलस थुरिंजिएंसिस टॉक्सिन और अन्य प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग करें।

  • घर पर भी जैविक कीटनाशक बनाया जा सकता है. इसके लिए, गोमूत्र में नीम की पत्तियां, धतूरे के पत्ते, अर्कमदार के पत्ते, केले या सीताफल के पत्ते, तंबाकू, और लाल मिर्च का पाउडर मिलाया जा सकता है.

  • जैविक एजेन्ट (बायो-एजेन्ट)

जैविक एजेन्ट (बायो-एजेण्ट्स) मुख्य रूप से परभक्षी (प्रीडेटर) यथा प्रेइंग मेन्टिस, इन्द्र गोप भृंग, ड्रोगेन फ्लाई, किशोरी मक्खी, क्रिकेट (झींगुर), ग्राउन्ड वीटिल, मिडो ग्रासहापर, वाटर वग, मिरिड वग,क्राइसोपर्ला, जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा, मकड़ी आदि एवं परजीवी (पैरासाइट) यथा ट्राइकोग्रामा कोलिनिस, कम्पोलेटिस क्लोरिडी, एपैन्टेलिस, सिरफिड लाई, इपीरीकेनिया मेलानोल्यूका आदि कीट होते हैं, जो मित्र कीट की श्रेणी में आते हैं। उक्त कीट शत्रु कीटों एवं खरपतवार को खाते हैं। इसमें कुछ मित्र कीटों को प्रयोगशाला में पालकर खेतों में छोड़ा जाता है परन्तु कुछ कीट जिनका प्रयोगशाला स्तर पर अभी पालन सम्भव नहीं हो पाया है, उनको खेत/फसल वातावरण में संरक्षित किया जा रहा है। वस्तुतः मकड़ी कीट वर्ग में नहीं आता है लेकिन परभक्षी होने के कारण मित्र की श्रेणी में आता है। बायो-एजेण्ट्स कीटनाशी अधिनियम में पंजीकृत नहीं है तथा इनकी गुणवत्ता, गुण नियंत्रण प्रयोगशाला द्वारा सुनिश्चित नहीं की जा सकती है।

1. ट्राइकोडरमा विरिडी/ट्राइकोडरमा हारजिएनम

ट्राइकोडरमा फफूंदी पर आधारित घुलनशील जैविक फफॅूदीनाशक है। ट्राइकोडरमा विरडी 1%W.P., 1-15%W.P., तथा ट्राइकोडरमा हारजिएनम 2% W.P. के फार्मुलेशन में उपलब्ध है। ट्राइकोडरमा विभिन्न प्रकार के फसलों, फलों एवं सब्जियों में जड़, सड़न, तना सड़न डैम्पिंग आफ, उकठा, झुलसा आदि फफॅूदजनित रोगों में लाभप्रद पाया गया है। धान, गेंहूँ, दलहनी फसलें गन्ना, कपास, सब्जियों, फलों आदि के रोगों का यह प्रभावी रोकथाम करता है। ट्राइकोडरमा के कवक तंतु हानिकारक फफूंदी के कवकतंतुओं को लपेट कर या सीधे अन्दर घुसकर उसका रस चूस लेते हैं। इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के द्वारा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्त्राव करते हैं, जो बीजों के चारों ओर सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदी से सुरक्षा देते हैं। ट्राइकोडरमा के प्रयोग से बीजों का अंकुरण अच्छा होता है तथा फसलें फफूंदजनित रोगों से मुक्त रहती हैं। नर्सरी में ट्राइकोडरमा का प्रयोग करने पर जमाव एवं वृद्धि अच्छी होती है। ट्राइकोडरमा के प्रयोग से पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदीनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ट्राइकोडरमा की सेल्फ लाइफ सामान्य तापक्रम पर एक वर्ष है।

2. ब्यूवेरिया बैसियाना

ब्यूवेरिया बैसियाना फफूँद पर आधारित जैविक कीटनाशक है। ब्यूवेरिया बैसियाना 1% WP, एवं 1-15% W.P के फार्मुलेशन में उपलब्ध है जो विभिन्न प्रकार के फसलों, फूलों एवं सब्जियों में लगने वाले फलीबेधक, पत्ती लपेटक, पत्ती खाने वाले कीट, चूसने वाले कीटों, भूमि में दीमक एवं सफेद गिडार आदि की रोकथाम के लिए लाभकारी हैं। ब्यूवेरिया बैसियाना अधिक आर्द्रता एवं कम तापक्रम पर अधिक प्रभावी होता है। ब्यूवेरिया बैसियाना के प्रयोग से पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदीनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ब्यूवेरिया बैसियाना की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है

3. स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स

स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स बैक्टीरिया पर आधारित जैविक फफूंदीनाशक/ जीवाणुनाशक है। स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स 0-5% WP के फार्मुलेशन में उपलब्ध है जो विभिन्न प्रकार के फसलों, फलों, सब्जियों एवं गन्ना में जड़ सड़न, तना सड़न डैम्पिंग आफ, उकठा, लाल सड़न, जीवाणु झुलसा, जीवाणुधारी आदि फफूँदजनित एवं जीवाणुजनित रोगों के नियंत्रण के लिए प्रभावी पाया गया है। स्यूडोमोनास के प्रयोग के 15 दिन पूर्व या बाद में रासायनिक बैक्टेरीसाइड का प्रयोग नहीं करना चाहिए। स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है।

4. मेटाराइजियम एनिसोप्ली

मेटाराइजियम एनिसोप्ली फफूँद पर आधारित जैविक कीटनाशक है। मेटाराइजियम एनिसोप्ली 1-15% W.P. एवं 1-5% W.P. के फार्मुलेशन में उपलब्ध है जो विभिन्न प्रकार के फसलों, फलों एवं सब्जियों में लगने वाले फलीबेधक, पत्ती लपेटक, पत्ती खाने वाले कीट, चूसने वाले कीट, भूमि में दीमक एवं सफेद गिडार आदि के रोकथाम के लिए लाभकारी हैं। मेटाराइजियम एनिसोप्ली कम आर्द्रता एवं अधिक तापक्रम पर अधिक प्रभावी होता है। मेटाराइजियम एनिसोप्ली के प्रयोग से 15 दिन पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदीनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मेटाराइजियम एनिसोप्ली की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है।

5. एजाडिरेक्टिन (नीम आयल)

एजाडिरेक्टिन वनस्पति पर आधरित वानस्पति कीटनाशक है। एजाडिरेक्टिन 0.03,0.15,0.3,0.5,1.0 एवं 5% E.C. के फार्मुलेशन में उपलब्ध हैं एजाडिरेक्टिन विभिन्न प्रकार के फसलों, सब्जियों एवं फलों में पत्ती खाने वाले, पत्ती लपेटने वाले, चूसने वाले, फली बेधक आदि कीटों के नियंत्रण के लिए प्रभावी है। इसके प्रयोग से कीटों में खाने की अनिक्षा उत्पन्न करती है तथा कीटों को दूर भगाती है। अण्डों से सूंडियॉ निकलने के तुरन्त बाद इसका छिड़काव करना अधिक लाभकारी होता है। एजाडिरेक्टिन की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है।


निष्कर्ष

जैविक खाद और पेस्ट कंट्रोल के उपायों का उपयोग करके किसान न केवल अपनी फसलों को बेहतर बनाते हैं, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा भी करते हैं। इन विधियों को अपनाकर किसान Sustainable Agriculture की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।


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